अभी मुझ में कहीं बाकी थोड़ी सी है ज़िन्दगी,
नाखुदा है मेरा खुदा फिर भी दिल में है बंदगी,
करता हूँ आज भी मैं खोये हुए लम्हों का इंतज़ार,
अतीत के उन सायों से आज भी है मुझे प्यार,
टूटे हुए खिलोने आज भी मैं संजो कर रखता हूँ,
बिखरे हुए सपनों को आज भी मैं पलकों पर बुनता हूँ,
हर लम्हा जीने की ज़िद में मौत से मैं झगड़ता हूँ,
हर कदम एक नए सफ़र की ख्वाहिश मैं रखता हूँ,
अभी मुझ में कहीं बाकी थोड़ी सी है ज़िन्दगी,
नाखुदा है मेरा खुदा फिर भी दिल में है बंदगी,
अभी मुझ में कहीं बाकी थोड़ी सी है ज़िन्दगी.........
(24/02/2013)
© Dr. Vibhor Garg. All rights reserved.

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