चलते हुए इन अकेली राहों पर,
जब देखता हूँ इधर उधर,
साए कुछ नज़र आते हैं,
पहचाने तो नहीं जाते, फिर भी, नज़र रोक जाते हैं,
कुछ के साथ होती है दुआ-सलाम निगाहों में ही,
तो कुछ यूं ही खामोश करीब से गुज़र जाते हैं....
हँस रहे हैं कुछ, गा रहे हैं कुछ,
अपनी ही धुन में चले जा रहे हैं कुछ,
ज़िन्दगी की उदासियों से बुझे बुझे से नज़र आ रहे हैं कुछ....
किसी के लिए ये डगर सिर्फ एक रास्ता है मंजिल तक पहुँचने का,
सड़क किनारे फुटपाथ पर ही अपना आशियाना बना रहे हैं कुछ....
ज़िन्दगी की दुश्वारियों को धुंए में उड़ा कर,
बेफिक्र पंछी से जिए जा रहे हैं कुछ,
कुछ इंतज़ार कर रहे हैं ज़िन्दगी का,
मौत को चीख चीख कर बुला रहे हैं कुछ....

(04/11/2011)
© Dr. Vibhor Garg. All rights reserved.
No comments:
Post a Comment